
वेटिकन सिटी। 88 साल की उम्र में लंबे समय से बीमार चल रहे पोप फ्रांसिस का वेटिकन सिटी में देहांत हो गया। वह ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु माने जाते थे। पॉप फ्रांसिस के मौत की खबर वेटिकन सिटी से दी गई है। पोप फ्रांसिस ने 12 साल तक कैथोलिक चर्च का नेतृत्व किया। मार्च 2013 में वह पोप बने थे जब उनके पूर्ववर्ती पोप बेनेडिक्ट ने इस्तीफा दिया था। तो वहीं, अब सवाल उठ रहे है कि अगला पोप कौन होगा।
बता दें कि फ्रांसिस को 14 फरवरी को रोम के जेमेली अस्पताल में सांस की तकलीफ के चलते भर्ती कराया गया था। लेकिन बाद में पता चला था कि उन्हें डबल निमोनिया था जिससे सांस लेना बेहद मुश्किल हो जाता है। बताया जा रहा है कि वह 20 अप्रैल की सुबह अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस से भी मिले थे। तो वहीं, अब सवाल उठ रहे है कि अगले पोप कौन होंगे।
ये 5 नाम चर्चा में, हो सकते है अगले पोप
वेटिकन सिटी में 253 कार्डिनल हैं। वोटिंग के अधिकार से 80 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को बाहर रखा जाता है। सिर्फ 138 कार्डिनल के पास ही मतदान का अधिकार है।
1. कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन : वेटिकन की सत्ता संरचना में एक बड़ा नाम, कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन का है, जो पिछले एक दशक से पोप फ्रांसिस के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में गिने जाते हैं। 2014 में उन्हें कार्डिनल का ओहदा मिला था।
2. कार्डिनल पीटर एर्डो : कैथोलिक चर्च में पीटर एर्डो एक ऐसा नाम है जो अपने रूढ़िवादी और परंपरागत विचारों के लिए जाने जाते हैं. इनकी उम्र 72 साल है। साल 2003 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें कार्डिनल बनाया था। वे यूरोप के बिशप सम्मेलन परिषद के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं और कैथोलिक परंपराओं के कड़े समर्थक माने जाते हैं।
3. कार्डिनल मातेओ ज़ुप्पी : कैथोलिक चर्च में सबसे प्रगतिशील और प्रभावशाली चेहरों में से एक हैं। वे पोप फ्रांसिस के सबसे पसंदीदा नेताओं में गिने जाते हैं। उनकी उम्र 69 साल है। 2022 से इटली के एपिस्कोपल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष हैं और 2019 में उन्हें पोप फ्रांसिस ने कार्डिनल नियुक्त किया था।
4. कार्डिनल रेमंड बर्क : कैथोलिक चर्च के सबसे रूढ़िवादी चेहरों में से एक हैं। इनकी उम्र 70 साल है। 2010 में पोप बेनेडिक्ट ङ्गङ्कढ्ढ ने उन्हें कार्डिनल बनाया था।
5. कार्डिनल लुइस एंटोनियो टैगले : लुइस एंटोनियो की उम्र 67 साल है। अगर ये पोप चुने जाते हैं, तो वे इतिहास में पहले एशियाई पोप बन सकते हैं। उन्हें 2012 में पोप बेनेडिक्ट ङ्गङ्कढ्ढ ने कार्डिनल बनाया था। वे पोप फ्रांसिस की नीतियों और उनकी सोच के करीबी माने जाते हैं। खासकर जब बात रुत्रक्चञ्जक्त समुदाय, अविवाहित माताओं और तलाकशुदा कैथोलिकों की हो, तो उन्होंने चर्च की कठोर भाषा और पक्षपातपूर्ण रवैये पर खुलकर सवाल उठाए हैं।