देश को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने जन्मदिन पर दिया अनोखा उपहार, 70 साल बाद भारत में दौड़ेंगे चीते।

Vijaydoot News

पवन कुमार रस्तोगी।

नई दिल्ली। पीएम मोदी ने शनिवार, 17 सितंबर 2022 को अपने जन्मदिन के मौके पर देश को अनोखा उपहार भेंट किया है। दरअसल, पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश में दक्षिण अफ्रीकी देश नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बने विशेष बाड़ों में रिहा किया है।

पीएम मोदी ने देशवासियों को दिया अहम वीडियो संदेश:-
इस अवसर पर पीएम मोदी ने देशवासियों को वीडियो संदेश भी दिया। उन्होंने कहा, मानवता के सामने ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं जब समय का चक्र हमें अतीत को सुधार कर नए भविष्य के निर्माण का मौका देता है। आज सौभाग्य से हमारे सामने एक ऐसा ही क्षण है। दशकों पहले जैव विविधता की जो सदियों पुरानी कड़िया टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोड़ने मौका मिला  है। आज भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं और मैं ये भी कहूंगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृतिप्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो चुकी है। मैं  इस ऐतिहासिक अवसर पर सभी देशवासियों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

चीते प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारीयों का कराएंगे बोध:-
आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा, विशेष रूप से मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का भी धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं। मुझे विश्वास है कि ये चीते न केवल प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारीयों का बोध कराएंगे बल्कि हमारे मानवीय मूल्यों और परंपराओं से भी अवगत कराएंगे।

जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो बहुत कुछ खो बैठते हैं:-
पीएम मोदी ने कहा, जब हम अपनी जड़ों से दूर होते हैं तो बहुत कुछ खो बैठते हैं, इसलिए ही आजादी के इस अमृतकाल में हमने अपनी विरासत पर गर्व और गुलामी की मानसिकता से मुक्ति जैसे पंच प्राणों के महत्व को दोहराया है। पिछली सदियों में हमने वह समय भी देखा है जब प्रकृति के दोहन को शक्ति प्रदर्शन और आधुनिकता का प्रतीक मान लिया गया था।

1947 में जब केवल आखिरी तीन चीते बचे थे…
पीएम मोदी ने बताया कि 1947 में जब केवल आखिरी तीन चीते बचे थे तो उनका भी साल के जंगलों में निष्ठुरता व गैर जिम्मेदारी से शिकार कर लिया गया। यह दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। आज आजादी के अमृत काल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है। अमृतमय तो वो सामर्थ्य होता है जो मृत को भी पुनर्जीवित कर देता है।

चीतों को भारत की धरती पर पुनर्जीवित करने में लगाई भरपूर ऊर्जा:-
उन्होंने कहा, मुझे खुशी है कि आजादी के अमृत काल में कर्तव्य और विश्वास का यह अमृत हमारी विरासत को हमारी धरोहरों को और अब चीतों को भी भारत की धरती पर पुनर्जीवित कर रहा है। इसके पीछे हमारी वर्षों की मेहनत है। एक ऐसा कार्य राजनीतिक दृष्टि से जिसे कोई महत्व नहीं देता, उसके पीछे भी हमने भरपूर ऊर्जा लगाई।

चीता एक्शन प्लान किया तैयार :-
पीएम मोदी ने आगे जोड़ते हुए कहा, इसके पीछे एक विस्तृत चीता एक्शन प्लान तैयार किया गया। हमारे वैज्ञानिकों ने लंबी रिसर्च की। साउथ अफ्रीकन और नामीबियाई एक्सपर्ट के साथ मिलकर काम किया। हमारी टीम वहां गई, वहां के एक्सपर्ट्स भी भारत आए। पूरे देश में चीतों के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक सर्वे किए गए और तब कूनो नेशनल पार्क को इस शुभ शुरुआत के लिए चुना गया। उन्होंने कहा, आज हमारी वो मेहनत परिणार्थ के रूप में हमारे सामने है।

प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी होता है सुरक्षित:-
यह बात सही है कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है। कूनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे तो यहां का ग्रास लैंड इको सिस्टम फिर से रिस्टोर होगा, बायोडायवर्सिटी और बढ़ेगी, आने वाले दिनों में यहां इको टूरिज्म बढ़ेगा, विकास की नई संभावनाएं जन्म लेंगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, लेकिन मैं आज सभी देशवासियों से एक आग्रह करना चाहता हूं कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा, सहयोग करना होगा। आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं। कूनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा। अंतर्राष्ट्रीय गाइडलाइन पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है। हमें अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है।

किसी पूरी जीवित जाति का अस्तित्व मिट जाए हमें कैसे स्वीकार हो सकता है ?
पीएम मोदी ने कहा, दुनिया आज जब प्रकृति और पर्यावरण की ओर देखती है तो सस्टेनेबल डेवलपमेंट की बात करती है लेकिन प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी भारत के लिए ये केवल सस्टेनेबिलिटी और सिक्योरिटी के विषय ही सिर्फ हैं ऐसा नहीं है। हमारे लिए ये हमारी सेंसिबिलिटी और प्यूरीचैलिटी का भी आधार है। हम वो लोग हैं जिनका सांस्कृतिक अस्तित्व ”सर्वम खल्विदं ब्रह्म”, इस मंत्र पर टिका हुआ है। अर्थात संसार में पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, जड़, चेतन जो कुछ भी है वो ईश्वर का ही स्वरूप है, हमारा अपना ही विस्तार है। हम वो लोग है जो कहते हैं ”परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति” अर्थात खुद के फायदे को ध्यान में रखकर जीना वास्तविक जीवन नहीं है। वास्तविक जीवन वो जीता है जो परोपकार के लिए जीता है। इसलिए हम जब खुद भोजन करते हैं, उसके पहले पशु-पक्षियों के लिए अन्न निकालते हैं। पीएम मोदी ने कहा, हमारे आसपास रहने वाले छोटे से छोटे जीव की भी चिंता करना हमें बचपन से सिखाया जाता है। हमारे संस्कार ऐसे हैं कि कहीं अकारण किसी जीव का जीवन चला जाए तो हम अपराध बोध से भर जाते हैं फिर किसी पूरी जीवित जाति का अस्तित्व ही अगर हमारी वजह से मिट जाए, ये हमें कैसे स्वीकार हो सकता है ?

इकोनॉमी और इकोलॉजी कोई विरोधाभासी क्षेत्र नहीं:-
पीएम मोदी ने कहा हमारे यहां कितने बच्चों को यह पता तक नहीं होता है कि जिस चीता के बारे में सुनकर वो बड़े हो रहे हैं, वो उनके देश से पिछली शताब्दी में ही लुप्त हो चुके हैं। आज अफ्रीका के कुछ देशों में और ईरान में चीता पाए जाते हैं लेकिन भारत का नाम उस लिस्ट से बहुत पहले हटा दिया गया था। आने वाले समय में बच्चों को इस विडंबना से गुजरना नहीं पडे़गा।  वे चीता को अपने ही देश में कूनो नेशनल पार्क में दौड़ता देख पाएंगे। चीता के जरिए आज हमारे जंगल और जीवन उसका एक बड़ा शून्य भर रहा है। आज 21वीं सदी का भारत पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि इकोनॉमी और इकोलॉजी कोई विरोधाभासी क्षेत्र नहीं है। पर्यावरण की रक्षा के साथ ही देश की प्रगति भी हो सकती है। यह भारत ने दुनिया को करके दिखाया है। आज एक और हम विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में शामिल हैं तो साथ ही देश के वन क्षेत्रों का विस्तार भी तेजी से हो रहा है। साल 2014 में हमारी सरकार बनने के बाद से देश में करीब-करीब 250 नए संरक्षित क्षेत्र जोड़े गए हैं। हमारे यहां एशियाई शहरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है। आज गुजरात देश में एशियाई शहरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है। इसके पीछे दशकों की मेहनत, रिसर्च बेस्ड पॉलिसीज और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है।

टाइगर की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था उसे समय से पहले हासिल किया है। असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है। हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30 हजार से ज्यादा हो गई है

पीएम मोदी ने कहा, आज देश में 75 वेटलैंड्स को रामसर साइट्स के रूप में घोषित किया गया है, जिनमें 26 साइट्स पिछले 4 वर्षों में ही जोड़ी गई हैं। देश के इन प्रयासों का प्रभाव आने वाली सदियों तक दिखेगा, और प्रगति के नए पथ प्रशस्त करेगा।

भारत में 70 साल बाद लाए गए चीते
उल्लेखनीय है कि भारत में 70 साल के अंतराल के बाद चीतों का इंतजार खत्म हुआ है। करीब 11 घंटे का सफर करने के बाद ये चीते भारत पहुंचे थे। इनमें पांच मादा और तीन नर चीतों को मॉडिफाइड बोइंग 747 विमान की मदद से नामीबिया की राजधानी होसिया से भारत लाया गया। इन चीतों में रेडियो कॉलर लगे हुए हैं।

“प्रोजेक्ट चीता” के तहत इन चीतों को लाया गया भारत:-
‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत इन चीतों को लाया गया है। दरअसल, केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय के निर्देश पर वर्ष 2010 में भारतीय वन्य जीव संस्थान यानि वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ने भारत में चीता पुनर्स्थापना के लिए संभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया था।

क्या है चीते की खूबी ?
चीता दुनिया का सबसे तेज रफ्तार से दौड़ने वाला जानवर है। ये 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है। आज पूरी दुनिया में सिर्फ 7,000 के करीब ही चीतें बचे हैं। चीता भारत में खुले जंगल और घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली में मदद करेगा। यह जैव विविधता के संरक्षण में मदद करेगा और जल सुरक्षा, कार्बन पृथक्करण और मिट्टी की नमी संरक्षण जैसी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को बढ़ाने में मदद करेगा, जिससे बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।

कब और कैसे गायब हुए थे चीते ?
लेकिन क्या भारत में कभी चीते थे ही नहीं? ऐसा नहीं है…, मौजूदा समय में विश्व में करीब 7,000 चीते हैं। लेकिन भारत में आखिरी बार चीता साल 1948 में देखा गया था। छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने 73 साल पहले एक वयस्क चीता और दो शावकों का शिकार किया। उन्होंने इसकी तस्वीरें बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी को भेजी थीं। 1947 में अपने शिकार के साथ खड़े महाराजा की चीतों के साथ यह तस्वीर भारतीय इतिहास में अंतिम साबित हुई। आखिरकार 1952 में सरकार ने अधिकारिक तौर पर चीता को भारत से विलुप्त घोषित कर दिया।

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