विश्व नर्स दिवस पर नर्सों की महत्वता व मौजूदा नर्सिंग के हालात पर विचार रख रहे हैं – सौरभ पाठक

Vijaydoot News
सौरभ पाठक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
)

नर्सों के मनोबल को बढ़ाने का दिन

आज पूरा विश्व अन्तराष्ट्रीय नर्स दिवस मना रहा है। नर्स दिवस के खास मौके पर सभी नर्सों को हार्दिक बधाई। विश्व नर्स दिवस पर हम सभी नर्सों की सेवा भाव व देखभाल को याद करते हैं। मौजूदा कोरोना काल में नर्स दिवस की महत्वता और भी बढ़ जाती है। वर्तमान में लोगों की नर्सिंग स्टाफ के प्रति आस्था इसलिए और भी बढ़ गयी है क्योंकि आज समूची मानव जाति कोरोना महामारी से अपने जीवन के लिए लड़ रही है। बिमारी  के वक्त डाक्टर से परामर्श प्राप्त करने के उपरान्त नर्स ही ऐसी सेविका होती है जो रोगी की देखभाल करती है। रोगी को बिमारी से निजात दिलाने में इन तिमारदार नर्सों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।  

नर्सिंग पेशेवर की शुरूआत करने वाली प्रख्यात फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल

दुनिया भर में हर साल 12 मई को फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल के जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय नर्स परिषद ने इस दिवस को पहली बार वर्ष 1965 में मनाया। नर्सिंग पेशेवर की शुरूआत करने वाली प्रख्यात फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल के जन्म दिवस 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 1974 में लिया गया। नर्सिंग को विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य पेशे के रूप में माना जाता है। नर्सिंग शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्तर जैसे सभी पहलुओं के माध्यम से रोगी की देखभाल करने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित, शिक्षित और अनुभवी होती हैं। जब पेशेवर चिकित्सक दूसरे रोगियों को देखने में व्यस्त होते है तब रोगियों की चौबीस घंटे देखभाल करने के लिए नर्सिंग की सुलभता और उपलब्धता होती है। नर्सिंग से रोगियों के मनोबल को बढ़ाने वाली और उनकी बीमारी को नियंत्रित करने में मित्रवत, सहायक और स्नेहशील होने की उम्मीद की जाती है।
दुनिया भर में अमीर और ग़रीब दोनों प्रकार के देशों में नर्सों की कमी चल रही है। विकसित देश अपने यहाँ नर्सों की कमी को अन्य देशों से नर्सों को बुलाकर पूरा कर लेते हैं और उनको वहाँ पर अच्छा वेतन और सुविधाएँ देते हैं। जिनके कारण वे विकसित देशों में जाने में देरी नहीं करती हैं। दूसरी ओर विकासशील देशों में नर्सों को अधिक वेतन और सुविधाओं की कमी रहती है और आगे का भविष्य भी अधिक उज्ज्वल नहीं दिखाई देता, जिसके कारण वे विकसित देशों के बुलावे पर नौकरी के लिए चली जाती हैं।
दुनिया में अधिकांश देशों में आज भी प्रशिक्षित नर्सों की भारी कमी चल रही है, लेकिन विकासशील देशों में यह कमी और भी अधिक देखने को मिलती है। भारत में विदेशों के लिए नर्सों के पलायन में पहले की अपेक्षा कमी आई है, लेकिन रोगी और नर्स के अनुपात में अभी भी भारी अंतर है। रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण रोगी और नर्स के अनुपात में अंतर बढ़ा है, जिस पर सरकार को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। नर्सों का पलायन काफ़ी रुका भी है लेकिन कुछ राज्यों और गैर सरकारी क्षेत्रों में आज भी नर्सों की हालत अच्छी नहीं है। उन्हें लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है और उनको वे सुविधाएँ नहीं दी जाती हैं, जिनकी वे हकदार हैं। वहीं सुधारात्मक पहलू ये भी है कि सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों और अस्पतालों में नर्सों की कमी को ध्यान में रखते हुए विवाहित महिलाओं को भी नर्सिंग पाठयक्रम में प्रवेश लेने की अनुमति दी गई है।

नर्सों की सराहनीय सेवा को स्वीकारते हुए राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगल पुरस्कार का प्रचलन है। क्यों ना इस कोरोना काल की मुश्किल घड़ी में सेवा प्रदान करने वाली उन तमाम नर्सों को हम राष्ट्रीय फ्लोरेंस पुरस्कार से सम्मानित करें । कोरोना की महामारी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली नर्सों के लिए इससे अच्छी सलामी, सम्मान व पुरस्कार और क्या हो सकता है ?

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