बस्ती। बस्ती सदर ब्लाक के गौरा गाँव में ‘कला लोक’ ट्रस्ट द्वारा 10 दिवसीय संस्कार गीतों के प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन मंचीय प्रस्तुति के साथ किया गया। मंचीय कार्यक्रम की शुरुआत अयोध्या की लोक कलाकार प्रकृति यादव नें अरे अरे शगुनी अरे अरे शगुनी शगुना ले आ, तोहरे शगुनवा रे शगुनी होई रे वियाह गीत के साथ किया। उन्होंने अवधी लोक संस्कृति पर आधारित संस्कार गीत पेश किए। प्रकृति यादव के सहयोगी कलाकारों ने ढोलक, हारमोनियम और मंजीरे की लय पर शानदार प्रस्तुति दी। उन्होंने श्रेष्ठ संतान के जन्म, नामकरण, विधा आरम्भ, कर्ण छेदन, मुंडन संस्कार और विवाह जैसे संस्कारों पर आधारित गीत सुनाकर वाहवाही बटोरी।
कार्यक्रम की शुरुआत गायिका प्रकृति ने अवधी गीत श्रेष्ठ संतान की कामना के लिए बंसी तो बाजे राजा रंगमहल मा… सुनाकर की। इसके बाद उन्होंने गोद भराई के समय गाया जाने वाला गीत सउरी मां सोंठ के लड्डू बनावौ और जन्म के समय गाया जाने वाला गीत बधैया बाजे अंगने … गाया। कार्यक्रम स्थल पर बैठे दर्शक एक के बाद गीतों पर झूमते रहे। सहयोगी गायक-गायिकाओं ने समूह गानकर लय-ताल का शानदार उदाहरण पेश किया। कलाकारों निमंत्रण के समय में गाया जाने वाला गीत पूजहूं गणपति गौरी प्रथम सखी…, अन्न प्राशन के समय गाया जाने वाला गीत बाबा की गोदी मां बईठै ललन किलकावै हो… और जनेऊ संस्कार गीत पूछहिं कौशल्या रानी, राजा दशरथ से बात… सुनाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। ने सहयोग दिया। कार्यक्रम में दर्शकों ने विभिन्न संस्कारों पर आधारित एक से एक अवधी लोक गीतों का आनंद लिया।
इस दौरान मुख्य अतिथि राम मूर्ति मिश्र ने हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में तेरहवें संस्कार का उल्लेख किया। कहा कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे सनातन समाज में बहुत से संस्कार हैं। प्रत्येक संस्कार का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। उनमें से एक महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह संस्कार। विवाह केवल संस्कार मात्र नहीं अपितु अपने आप में पूरी व्यवस्था है। यहीं से जीवन के चार आश्रमों में से गृहस्थ आश्रम का आरंभ होता है। भोजपुरी संगीत में विवाह के संस्कार गीत अलग स्थान रखते हैं।
इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति भौगोलिक विशेषताओं की तरह बहुत ही विशिष्ठ है। यहाँ हर प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक परम्परा और लोकाचार है। इन्हीं विभिन्नताओं की वजह से भारत में सांस्कृतिक विभिन्नता भी सर चढ़ कर बोलती है। आशुतोष मिश्र ने कहा की उत्तर प्रदेश में एक कहावत है की हर दो फर्लाग पर भाषा और पानी बदल जाता है। ये सच भी है की यहाँ की सांस्कृतिक विविधता देखते ही बनती है। यहाँ पर परमपराओं और संस्कृति का अद्भुत संगम है।
जनार्दन पाण्डेय ने कहा लोक जीवन से जुड़े ये लोक गीत हमारी संस्कृति की ही संगीतमय अभिव्यक्ति हैं। इन गीतों के जरिए कोई भी इंसान जीवन से सीधे जुड़ जाता है, चाहे वह दुनिया के किसी कोने में हो। वह सहज ही पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना से सहज जुड़ जाते हैं। कहा कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में जो सोलह संस्कारों का जिक्र मिलता है, उन्हें सिर्फ रीति-रिवाजों से न जोड़कर कर्मों और मूल्यों से जोड़ना चाहिए।कार्यक्रम में जनार्दन यादव, धर्मेन्द्र त्रिपाठी, मुकेश त्रिपाठी, तन्मय पाण्डेय, ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर विशाल पाण्डेय, प्रीती शुक्ल, आशीष , सुभाष मणि त्रिपाठी, उपस्थित रहे।