
•जानिए अनुकंपा नियुक्ति को लेकर क्या है बैंक की नीति।
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति का मकसद घर के मुखिया की मौत से ठंडी हो चुकी चूल्हे की आग को जिंदा रखना है। जिंदगी को मालामाल बनाना नहीं। जीविका चलाने में सक्षम परिवार को नियुक्ति देना नीति और संविधान के खिलाफ है।
इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति अजय भनोट की अदालत ने प्रयागराज की चंचल सोनकर की याचिका खारिज कर दी। याची ने भारतीय स्टेट बैंक में तैनात रहे पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। बैंक प्रबंधन ने 24 जुलाई 2023 को उनका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि परिवार की आर्थिक स्थिति ‘वित्तीय संकट’ की श्रेणी में नहीं आती। इसके खिलाफ चंचल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
अधिवक्ता ने दलील दी कि 17 नवंबर 2022 को पति के निधन के बाद याची पत्नी गृहणी है, जो बेसहारा हो गई है। लिहाजा, वह अनुकंपा नियुक्ति की हकदार है। वहीं, बैंक की ओर से बताया गया कि कर्मचारी के निधन के बाद परिवार को विभिन्न मदों में करीब 1.55 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। ब्याज की दरों के मुताबिक परिवार की मासिक आय करीब 99,555.71 बनती है, जो मृतक के अंतिम मासिक वेतन से करीब 75 प्रतिशत अधिक है। इसलिए परिवार को ‘वित्तीय संकट’ संकट की श्रेणी में नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति केे दावे को खारिज कर दिया। कहा कि अनुकंपा नियुक्ति याची का मौलिक अधिकार नहीं है। इसका उद्देश्य केवल मृतक के आश्रितों की आर्थिक मदद करना है, जिससे घर का चूल्हा जलता रहे।
बैंक की नीति के अनुसार यदि किसी परिवार की मासिक आय अंतिम वेतन के 60 या 75 फीसदी से अधिक है तो उसे ‘वित्तीय संकट’ की श्रेणी में नहीं माना जाएगा। इसमें मृतक कर्मचारी के प्रोविडेंट फंड (भविष्य निधि), ग्रेच्युटी, लीव इनकैशमेंट (अवकाश के बदले दिए जाने वाली रकम) और बीमा की राशि की गणना भी शामिल है।