
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी पद पर नियुक्ति के लिए केवल आपराधिक मामले में फंसाया जाना ही उम्मीदवारी को खारिज करने का वास्तविक आधार नहीं बन सकता है।
दहेज के मामलों की जटिल प्रकृति को देखते हुए, न्यायालय ने माना कि जहां आरोप गंभीर नहीं थे और मिलीभगत स्थापित नहीं की जा सकी,याचिकाकर्ता को दहेज के मामले में आरोपी होने के आधार पर रोजगार से वंचित नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने उस मामले में जहां नियुक्ति चाहने वाला व्यक्ति मुख्य आरोपी का भाई था और दहेज के मामले में फंसा हुआ था,
जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा कि “समाज में प्रचलित सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए, जबकि महिलाएं अपने वैवाहिक घरों में क्रूरता का शिकार होती हैं, यह भी उतना ही सच है, और अब तक न्यायिक रूप से स्वीकार किया गया है, कि मामूली या बिना किसी उल्लंघन के, पति के पूरे परिवार को या तो पुलिस को रिपोर्ट किया जाता है या असंतुष्ट पत्नी या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता का आरोप लगाते हुए आपराधिक न्यायालय में लाया जाता है।
याचिका दाखिल कर याची बाबा सिंह ने चीफ इंजीनियर लघु सिंचाई लखनऊ के 16 फरवरी 2024 को पारित आदेश को चुनौती दी थी जिसके द्वारा असिस्टेंट बोरिंग टेक्नीशियन पद पर हुए चयन के बावजूद दहेज मामले में आरोपी बनाए जाने के कारण नियुक्ति पत्र देने से इंकार कर दिया गया था। याची के खिलाफ मिर्जापुर की एक अदालत ने दहेज के मामले में कम्पलेन्ट केस में सम्मन जारी किया था।