Kartik Maas Devuthani Ekadashi 2024: कार्तिक मास में पड़ने वाले बड़े व्रत एवं पर्वों में आज देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु की योगनिद्रा से जागने के कारण इस दिन को देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी का नाम पड़ा। अब 14 को वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को रहेगी। हिंदू कैलेंडर के अनुसार यह पवित्र कार्तिक का महीना 18 अक्टूबर 2024 शुक्रवार तिथि मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा से प्रारंम्भ हुआ है जो 15 नवंबर को खत्म होगा।
आज कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी है जिसमें भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागते हैं। भगवान विष्णु के जागने पर सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं। दरअसल, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार महीने के लिए सो जाते हैं और योग निद्रा में चले जाते हैं जिसके कारण मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं। कार्तिक माह में भगवान विष्णु की पूजा-आराधना, पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व होता है।
पुराणों में कार्तिक महीने के दौरान दीपदान करने का जिक्र है। साथ ही देवउठनी एकादशी, वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान करने की परंपरा है। मान्यता है दीपदान से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। भगवान विष्णु और लक्ष्मी की विशेष कृपा भी मिलती है। दीपदान से जीवन का अंधकार दूर होता है।
देवउठनी एकादशी के दिन पूजा विधि: गन्ने का मंडप बीच में चौक बनाये जाते हैं। चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रखकर या चौक के साथ ही भगवान के चरण चिह्न बनाए जाते हैं, जो ढके रहने चाहिए। भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई अर्पित किया जाता है। फिर घी का एक दीपक जलाएं। इसे रात भर जलने दें। फिर भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा करें और चरणों को स्पर्श करके उनको जगाएं। कीर्तन करें। व्रत-उपवास की कथा सुनें। इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरु किए जा सकते हैं।कहते हैं कि भगवान के चरणों का स्पर्श करके जो मनोकामना मांगते हैं, वो पूरी हो जाती है।
देवउठनी एकादशी महामंत्र:-
मंगलम भगवान विष्णु, मंगलम गरुड़ध्वज:/
मंगलम पुंडरीकाक्षः, मंगलाय तनोहरि।।
कार्तिक माह का संबंध भगवान कार्तिकेय से भी है।
भगवान कार्तिक से पड़ा इस महिने का नाम:– पौराणिक कथा के मुताबिक तारकासुर को वरदान मिला था कि उसका वध शिवजी के पुत्र से ही होगा। तारकासुर ने वरदान पाकर देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया था। तब भगवान विष्णु और अन्य देवताओं ने शिव जी से विवाह करने की प्रार्थना की। उस समय देवी पार्वती शिवजी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। शिवजी देवी पार्वती के कठोर तप से प्रसन्न हुए और उनसे विवाह किया। फिर कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ।
कुछ समय बाद ही कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध कर दिया था। तारकासुर का वध हिन्दी पंचांग के आठवें माह में हुआ था। कार्तिकेय स्वामी के पराक्रम से शिव जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने इस हिंदी महीने को कार्तिक नाम दिया। माह में किए गए पूजा-पाठ से अक्षय पुण्य मिलता है।