
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर लगी आग के बाद भारी मात्रा में नकदी बरामद होने से न्यायपालिका में हड़कंप मच गया। मामला इतना गंभीर हो गया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना के नेतृत्व में कॉलेजियम ने उन्हें तत्काल स्थानांतरित करने का फैसला किया।
कैसे हुआ खुलासा?
रिपोर्ट के अनुसार, आग लगने के समय न्यायमूर्ति वर्मा शहर से बाहर थे। उनके परिवार के सदस्यों ने तुरंत फायर ब्रिगेड और पुलिस को सूचना दी। आग बुझाने के दौरान दमकल कर्मियों को एक कमरे में भारी मात्रा में नकदी मिली, जिसके बाद इस मामले को आधिकारिक रूप से दर्ज किया गया।
घटना की जानकारी मिलते ही स्थानीय पुलिस ने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित किया, जिससे यह मामला सरकार के उच्च स्तर तक पहुंच गया। अंततः सीजेआई संजीव खन्ना को सूचना दी गई, जिन्होंने तुरंत सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बैठक बुलाई। कॉलेजियम ने सर्वसम्मति से न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से स्थानांतरित कर उनके मूल हाईकोर्ट, इलाहाबाद भेजने का निर्णय लिया। बता दें कि न्यायमूर्ति वर्मा को अक्टूबर 2021 में इलाहाबाद से दिल्ली हाईकोर्ट में भेजा गया था।
रिपोर्ट के मुताबिक यशवंत वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उन्होने दिल्ली के हंसराज कॅालेज से बी. कॅाम ऑनर्स किया और रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की। 8 अगस्त 1992 से इन्होंने वकालत की शुरूआत की। साल 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्पेशल एडवोकेट बने। 2012- 2013 तक उत्तर प्रदेश के चीफ स्टैंडिंग काउंसिल बने। अगस्त 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीनियर वकील बने। 13 अक्टूबर 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एडिशनल जज बने। इसके बाद 1 फरवरी 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में परमानेंट जज बने फिर 11 अक्टूबर 2021 को ये दिल्ली हाईकोर्ट के जज बनाए गए।
सिर्फ ट्रांसफर काफी नहीं?
कॉलेजियम के कुछ सदस्यों ने इस घटनाक्रम को न्यायपालिका की छवि के लिए गंभीर झटका बताया। उनका मानना था कि सिर्फ स्थानांतरण पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि इससे जनता का न्याय प्रणाली से विश्वास कमजोर हो सकता है। कुछ सदस्यों ने न्यायमूर्ति वर्मा से इस्तीफा मांगे जाने का सुझाव दिया। यदि वह इस्तीफा देने से इनकार करते हैं, तो उनके खिलाफ संसद के माध्यम से महाभियोग प्रक्रिया शुरू करने की बात भी उठी।
क्या कहता है संविधान?
संविधान के तहत, किसी भी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार, अनियमितता या कदाचार के आरोपों की जांच के लिए 1999 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक इन-हाउस प्रक्रिया तैयार की गई थी। इस प्रक्रिया के तहत पहले संबंधित न्यायाधीश से स्पष्टीकरण मांगा जाता है। यदि जवाब असंतोषजनक होता है या गहन जांच की जरूरत महसूस की जाती है, तो सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश और दो हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की इन-हाउस जांच समिति गठित की जाती है। इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होगी, यह कॉलेजियम और सरकार के अगले कदमों पर निर्भर करेगा।