
Dev Deepawali-2024: देव दिपावली, जिसे देवों की दिवाली भी कहा जाता है, भगवान शिव की नगरी वाराणसी में मनाई जा रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार मनाया जाता है और इसके ठीक 15 दिन बाद यानी कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है। आज शुक्रवार को कार्तिक मास की पूर्णिमा है। इस पर्व को त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली भी कहते हैं। माना जाता है कि इस तिथि पर भगवान शिव ने तारकासुर के तीन पुत्रों का वध किया था। इन तीन असुरों को ही त्रिपुरासुर कहते हैं। इस वजह से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहते हैं।
पौराणिक कथा है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध कर दिया था, इसके बाद तारकासुर के तीन पुत्र तरकाक्ष, कमलाक्ष, विद्युन्माली ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया।
तारकासुर के तीनों पुत्रों की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी उनके सामने प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। इन तीनों असुरों ने अमरता का वरदान मांगा तो ये वर देने के लिए ब्रह्मा जी ने मना कर दिया। इसके बाद तीनों ने असुरों ने बहुत सोच-समझ वर मांगा कि ब्रह्मदेव आप हमारे लिए तीन पुरियों (नगर) की रचना करें और जब युगों में एक बार ये तीनों पुरियां एक सीधी रेखा में आएंगी, तब कोई इन तीनों पुरियों को एक बाण से एक साथ खत्म करें, तब ही हमारी मृत्यु हो।
ब्रहमा जी ने तारकासुर के तीनों पुत्रों को ऐसा ही वर दे दिया। इस वर के बाद इन तीनों असुरों का नाम त्रिपुरासुर हो गया। तीनों असुरों ने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया, कोई भी देवता इन्हें पराजित नहीं कर पा रहा था। तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव सृष्टि की रक्षा के लिए त्रिपुरासुर का वध करने का संकल्प लिया।
जब त्रिपुरासुर की तीनों पुरियां यानी नगर एक सीधी रेखा में आए, तब भगवान शिव ने एक ही बाण से तीनों पुरियों को नष्ट कर दिया, इसके बाद त्रिपुरासुर यानी तारकासुर के तीनों पुत्रों का वध हो गया। त्रिपुरासुर का वध करने की वजह से ही शिव जी को त्रिपुरारी भी कहा जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर प्रलय काल में धरती पर जीवन की रक्षा की। इस दिन को देव दिवाली नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवता धरती पर विराजते हैं।
अब जानिए कार्तिक पूर्णिमा पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
- भगवान शिव ने हिन्दी पंचांग के आठवें महीने का नाम कार्तिकेय स्वामी के नाम पर कार्तिक रखा था, क्योंकि इसी महीने में कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध किया था। कार्तिक पूर्णिमा पर ये महीना खत्म होता है, इसलिए इस पर्व पर कार्तिकेय स्वामी की विशेष पूजा करनी चाहिए। गणेश पूजन के बाद कार्तिकेय स्वामी का जल-दूध से अभिषेक करें। धूप-दीप जलाकर आरती करें। ऊँ श्री स्कंदाय नमः मंत्र का जप करें। स्कंद कार्तिकेय स्वामी का ही एक नाम है।
- कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने तारकासुर के तीन पुत्रों का वध करके सृष्टि की रक्षा की थी, इस कारण ये भगवान शिव की पूजा का पर्व है। इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध और पंचामृत चढ़ाना चाहिए। बिल्व पत्र, हार-फूल, धतूरा, आंकड़े के फूलों से शिवलिंग का श्रृंगार करें। शिवलिंग पर चंदन का लेप करें। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें। भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें।
- पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की विशेष पूजा करने की परंपरा है। भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें। ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें। तुलसी के साथ मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं। इस तिथि पर विष्णु जी के स्वरूप भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ने-सुनने की भी परंपरा है।
- कार्तिक पूर्णिमा पर नदी स्नान, दान-पुण्य करने की भी परंपरा है। अभी ठंड का समय शुरू हो रहा है, ऐसे में जरूरतमंद लोगों को ऊनी वस्त्रों का दान करें। इसके अलावा धन, अनाज, जूते-चप्पल का भी दान कर सकते हैं। किसी गौशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें।
देव दिवाली पर पूजन शुभ मुहुर्त- पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर प्रारंभ हो गई है और 16 नवंबर को सुबह 02 बजकर 58 मिनट पर समाप्त होगी। प्रदोष काल देव दिवाली का मुहूर्त शाम 05 बजकर 10 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। पूजन की कुल अवधि 02 घंटे 37 मिनट की है।