वट अमावस्या के पर्व पर सुहागिनें वट वृक्ष की छांव में अपने सुहाग का बांधती हैं बन्धन।
हरिद्वार (उत्तराखंड) से अरविंद गोयल की रिपोर्ट।
वट अमावस्या पर सुहागिनें व्रत रख कर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस दिन देवी सावित्री के त्याग पति प्रेम तथा पति व्रत धर्म की कथा का स्मरण करती हैं। यह व्रत सुहागिनों के लिए सौभाग्य वर्धक, दुख नाशक,तथा धन धान्य प्रदान करने वाला है जो स्त्रियाँ वट सावित्री व्रत करती हैं वे पुत्र पौत्र धन धान्य आदि पदार्थों को प्राप्त करके चिर काल तक पृथ्वी पर सभी सुखों को भोग कर अपने पति के साथ ब्रह्म लोक को प्राप्त करती हैं। ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा तने में विष्णु भगवान तथा डालियों में त्रिनेत्र धारी भगवान शंकर का निवास होता है तथा बहुत सी शाखाएँ नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं जिन्हें देवी सावित्री का रुप माना जाता है। अतःसन्तान प्राप्ति की इच्छुक महिलायें भी इस व्रत को करती हैं तथा वट वृक्ष की छांव में ही देवी सावित्री ने पति को पुनर्जीवित किया था। इसी मान्यता के आधार पर स्त्रियाँ अचल सुहाग की प्राप्ति के लिये इस दिन वट वृक्षों की पूजा करती हैं।